#_महाराणा_राजसिंह_जी_के_इतिहास_का_भाग_21641 ई.कुँवर राजसिंह की मुगलों से पहली मुठभेड़महाराणा जगतसिंह ने अपनी माता जाम्बुवती बाई जी को गंगास्नान करने के लिए सोरभ जी की तरफ भेजा।महाराणा ने सुरक्षा खातिर अपने 12 वर्षीय पुत्र कुँवर राजसिंह को मेवाड़ी फौज की एक टुकड़ी समेत अपनी माता के साथ भेजा सोरभ जी पहुंचकर बाईजीराज जाम्बुवती बाई व कुँवर राजसिंह ने स्वर्ण के तुलादान किए इसके अलावा भी लाखों का धन दान किया और उदयपुर लौट आए। अपने तेज़ तर्रार बर्ताव के कारण इस सफ़र पर जाते वक़्त व लौटते वक़्त दोनों ही बार कुँवर राजसिंह रास्ते में आने वाली मुगल चौकियों पर बादशाही अफसरों से उलझते हुए आए बादशाही अफसरों ने कुँवर राजसिंह की शिकायत बादशाह शाहजहाँ से बहुत बढ़ा चढ़ाकर कर दी जिससे शाहजहाँ सख्त नाराज़ हुआ।1643 ई. कुँवर राजसिंह के ज़रिए महाराणा जगतसिंह का रक्षात्मक रवैया शाहजहाँ अजमेर ज़ियारत के बहाने महाराणा जगतसिंह को अपने रुतबे का एहसास कराने के लिए आया।महाराणा जगतसिंह ने बड़े युद्ध को टालने के लिए कुँवर राजसिंह को अजमेर में बादशाह के पास भेजा जोगी तालाब के निकट बादशाही डेरे में जाकर कुँवर राजसिंह ने शाहजहाँ को एक हाथी नज़र किया।शाहजहाँ ने ख़ुश होकर कुँवर राजसिंह को खिलअत सरपेच जडाऊ जम्धर घोड़ा व सोना दिया।कुँवर राजसिंह को विदाई के वक़्त बादशाह शाहजहाँ ने खिलअत, तलवार, ढाल, घोड़ा, हाथी व ज़ेवर दिए कुँवर राजसिंह के साथ आए मेवाड़ी सर्दारों को भी खिलअत घोड़े वगैरह देकर विदा किया।इसी वर्ष 30 अप्रैल को महाराणा कर्णसिंह के बेटे गरीबदास किसी नाराजगी के सबब से मेवाड़ छोड़कर बादशाह के पास चले गए जहां शाहजहाँ ने उनको 1500 जात व 700 सवार का मनसब व जागीर दी।1646 ई. शाहजहाँ ने बलख बदख्शां के प्रदेश पर फतह हासिल की जिसकी मुबारकबाद देने के लिए महाराणा जगतसिंह ने कुँवर राजसिंह को दिल्ली के बादशाही दरबार में भेजा कुछ दिन वहाँ रहकर कुँवर फिर से मेवाड़ लौट आए।27 अप्रैल, 1648 ई. "मुगलों से दोबारा मुठभेड़" कुंवर राजसिंह अपनी माता के साथ गंगा स्नान व तुलादान के लिए गोकुल, मथुरा, प्रयाग व सौरभजी गए इस दौरान 20 वर्षीय कुँवर राजसिंह की रास्ते में पड़ने वाली कई मुगल चौकियों पर तैनात मुगलों से मुठभेड़ हुई।#_____प्रथम_विवाह_____कुँवर राजसिंह का प्रथम विवाह बूँदी के राव शत्रुसाल हाडा की बड़ी पुत्री कुँवराबाई से तय हुआ इन्हीं राव की छोटी पुत्री का विवाह मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह से इसी दिन व मुहूर्त पर तय हुआ।दोनों बारातें एक समय पर तोरण के लिए पहुंची तो दोनों तरफ से पहले तोरण बन्दाई को लेकर कहासुनी हो गई राव शत्रुसाल ने बीच में पड़कर सुलह करवाई व कुँवर राजसिंह को पहले तोरण बन्दाई का मौका मिला।अगले भाग में महाराणा राजसिंह के राज्याभिषेक के बारे में लिखा जाएगा पोस्ट लेखक वनिता कासनियां पंजाब जिला फाजिल्का ,
_महाराणा_राजसिं ह_जी_के_इतिहास_ का_भाग_ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 1641 ई.कुँवर राजसिंह की मुगलों से पहली मुठभेड़ महाराणा जगतसिंह ने अपनी माता जाम्बुवती बाई जी को गंगास्नान करने के लिए सोरभ जी की तरफ भेजा। महाराणा ने सुरक्षा खातिर अपने 12 वर्षीय पुत्र कुँवर राजसिंह को मेवाड़ी फौज की एक टुकड़ी समेत अपनी माता के साथ भेजा सोरभ जी पहुंचकर बाईजीराज जाम्बुवती बाई व कुँवर राजसिंह ने स्वर्ण के तुलादान किए इसके अलावा भी लाखों का धन दान किया और उदयपुर लौट आए। अपने तेज़ तर्रार बर्ताव के कारण इस सफ़र पर जाते वक़्त व लौटते वक़्त दोनों ही बार कुँवर राजसिंह रास्ते में आने वाली मुगल चौकियों पर बादशाही अफसरों से उलझते हुए आए बादशाही अफसरों ने कुँवर राजसिंह की शिकायत बादशाह शाहजहाँ से बहुत बढ़ा चढ़ाकर कर दी जिससे शाहजहाँ सख्त नाराज़ हुआ। 1643 ई. कुँवर राजसिंह के ज़रिए महाराणा जगतसिंह का रक्षात्मक रवैया शाहजहाँ अजमेर ज़ियारत के बहाने महाराणा जगतसिंह को अपने रुतबे का एहसास कराने के लिए आया। महाराणा जगतसिंह ने बड़े युद्ध को टालने के लिए कुँवर राजसिंह को अजमेर में बादशाह के पास भेजा जोगी तालाब के...