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. "माल्यहारिणी कुण्ड" एक समय कार्तिक माह में गिरिराज गोवर्द्धन में दीपावली महोत्सव के अवसर पर ब्रजवासी अपनी–अपनी गायों आदि को विविध प्रकार की वेषभूषाओं से सुसज्जित करने में संलग्न थे! गोपियाँ भी अपने–अपने घर से विविध प्रकार की वेषभूषा लाकर गौओं को भूषित कर रही थीं! श्रीराधिका जी भी सहेलियों के साथ माल्यहारिणी कुण्ड के निकट माधवी चबूतरे पर बैठकर सुन्दर–सुन्दर मुक्ताओं से नाना प्रकार के भूषण प्रस्तुत करने लगीं! इसी बीच विचक्षण नामक शुक पक्षी के मुख से श्रीराधिकाजी द्वारा मुक्ता द्वारा विविध प्रकार के श्रृङ्गारों के बनाये जाने की बात सुनकर श्रीकृष्ण श्रीराधिका जी के पास उपस्थित हुए ! और उनसे कुछ मुक्ता माँगे किन्तु श्रीराधिका जी तथा उनकी सहेली गोपियों ने गर्व पूर्वक दो-चार बातें सुनाकर मुक्ता देने के लिए निषेध कर दिया! फिर भी श्रीकृष्ण ने कहा– 'सखियों!' 'यदि तुम अधिक संख्या में मुक्ता नहीं दे सकती हो, तो थोड़े से ही मुक्ता दे दो, जिससे मैं अपनी प्यारी हंसिनी और हरिणी नामक गौओं का श्रङ्गार कर सकूँ!' परन्तु हठीली गोपियों ने श्रीकृष्ण की इस प्रार्थना को भी अस्वीकार कर दिया! ललिताजी तो कुछ उत्तम-उत्तम मुक्ताओं को हाथों में लेकर श्रीकृष्ण को दिखलाती हुई कहने लगी– 'कृष्ण! ये मुक्ताएँ साधारण नहीं हैं, जिनसे तुम अपनी गायों का श्रङ्गार कर सको, ये बड़ी मूल्यवान मुक्ताएँ हैं, समझे?' श्रीकृष्ण निराश होकर घर लौट आये! उन्होंने मैया यशोदा से हठपूर्वक कुछ मुक्ता लेकर यमुना के पनघट के समीप ही जमीन को खोद खोदकर उसमें उन मुक्ताओं को रोप दिया! उस स्थान को चारों ओर से इस प्रकार घेर दिया, जिससे पौधे निकलने पर उसे पशु-पक्षी नष्ट नहीं कर सकें, श्रीकृष्ण प्रतिदिन प्रचुर गो दुग्ध से उस खेत की सिंचाई भी करने लगे! इसके लिए उन्होंने गोपियों से दूध भी माँगा, परंतु उन्होंने उसके लिए भी अस्वीकार कर दिया! बड़े आश्चर्य की बात हुई– दो-चार दिनों में ही उन सारी मुक्ताओं में अंकुर लग गये तथा देखते-देखते कुछ ही दिनों में पौधे बड़े हो गये तथा उनमें प्रचुर मुक्ताओं के फल लग गये! उनसे अत्यन्त सुन्दर-सुन्दर प्रचुर मात्रायें मुक्ताएँ भी निकलने लगी! यमुना जल भरने के लिए पनघट पर आती-जाती हुई गोपियों ने इस आश्चर्चजनक मुक्ता के खेत को मुक्ताओं से भरे हुए देखा! वे आपस में काना-फूँसी भी करने लगीं! इधर श्रीकृष्ण ने बहुत-सी मुक्ताओं को लाकर बड़ी प्रसन्नतापूर्वक घर लाकर मैया के आँचल में रख दिया! मैया ने आश्चर्यपूर्वक पूछा– कन्हैया! तुम्हें इतनी उत्तम मुक्ताएँ कहाँ से मिलीं? श्रीकृष्ण ने उन्हें सारी बातें बतलायीं! अब श्रीकृष्ण सखाओं के साथ अपनी सारी गौओं का श्रङ्गार करने के लिए अगणित मुक्ता मालाएँ बनाने लगे! उनकी गौएँ भी उन मुक्तामालाओं से विभूषित होकर इधर–उधर डोलने लगीं! गोपियों को यह बात बड़ी असहृय हुई उन्होंने भी अपने-अपने घरों से छिपा-छिपाकर बहुत-सी मुक्ताओं को लेकर श्रीकृष्ण जैसी मुक्ता की खेती की! उसे गौओं के दूध से प्रचुर सिंचन भी किया! उन मुक्ताओं से पौधे भी निकले, किन्तु आश्चर्य की बात यह हुई कि उनसे लता उगने लगीं! ऐसा देखकर गोपियाँ बड़ी चिन्तित हुई! उन्होंने सारी घटना सुनाकर श्रीकृष्ण से कुछ मुक्ता के लिए प्रार्थना की! रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण ने अवहेलना पूर्वक मुक्ता देना अस्वीकार कर दिया, परन्तु अन्त में उन मुक्ताओं के बदले उनसे कुछ दान आदि माँगकर उन्हें दिव्य मुक्ता दे दिए! इस प्रकार यह रहस्यपूर्ण लीला इस कुण्ड पर सम्पन्न होने के कारण इस कुण्ड का नाम माल्यहारिणी कुण्ड हुआ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ----------:::×:::---------- "जय जय श्री राधे"

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